भीड़ द्वारा सजा देना भी अपराध है !   
      
झज्जर के गांव दुलिना में अक्टूबर 2002 में गौवध के शक में 5 दलितों की निर्मम हत्या की खबर से लेकर रोहतक के टिटोली गांव में बीते बुधवार को बछड़े का मृत शरीर पाए जाने के बाद मुस्लिम परिवार पर हमला होने तक आखिर बदला ही क्या है?
जुनैद व अकबर @ रकबार की तथाकथित गौरक्षकों द्वारा हत्या कर दिए जाने की ख़बरें बीते दिनों अखबारों की सुर्खियां रहीं |  अब टिटोली गांव के बाहर मृत बछड़े का शव पाए जाने के बाद गांव के मुस्लिम परिवार पर क्रोधित भीड़ ने हमला किया | बताया गया कि आंदोलित भीड़ को शक था कि गांव के यामीन ने बछड़े का वध किया है | यामीन व् पारिवार के लोग अपने घर में मौजूद होते तो ना मालूम क्या होता ? गांव के लोगों की शिकायत पर यामीन पर “प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल एक्ट, 2015” के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया | मगर शक के आधार यामिन के घर पर भीड़ द्वारा हमला कर नुक्सान पहुंचाना भी अपराध है, जिसे करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं |
हरियाणा सरकार द्वारा 16 मार्च 2015 को विधानसभा में गौ सरंक्षण गौ संवर्धन  बिल सर्वसम्मति से पारित किया गया | इसके बाद पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने जुलाई 2015 में एक रिपोर्ट “गौमांस पर प्रतिबंध और मौलिक अधिकारों का हनन” जारी करते हुए कहा कि गौमांस प्रतिबंध जीवन और जीविका के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध एक गहरा प्रहार है | आगे यह भी कहा गया कि इसमें कोई असहमति नहीं है कि जानवरों के खिलाफ क्रूरता, पशु आश्रयों की कमी, बूचड़खानों में साफ-सफाई की स्थिति पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है|
गौ हत्या के शक के आधार पर व्यक्तियों को मार दिए जाने की खबरें तो पहले भी सुनाई देती थी परंतु हाल-फिलहाल इन खबरों का सिलसिला तेज हुआ है | तथाकथित गौरक्षक कानून को अपने हाथ में लेने अपनी आस्था के बहाने, मात्र शक के आधार पर हत्या करने तक का कदम उठाते हुए संकोच नहीं करते हैं | इस पूरे सिलसिले में सवाल जहन में उठते हैं जिनका उत्तर तलाश करने की जरूरत है | पहला, क्या सरकार द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में जिस विमर्श का निर्माण हुआ उसने गाय के प्रति आस्था के भाव को इस स्तर पर पहुंचा दिया है कि मात्र शक के आधार पर भीड़ क्रोधित हो सजा देने लगी है ? दूसरा, क्या सरकार की कार्यप्रणाली से ही नफरत का व्यापार करने वाले धर्म आस्था के नाम पर हत्या तक करने का हौसला करने लगे हैं ?
इन सवालों को समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम को लेकर कानून की क्या स्थिति है ? और जानवरों के प्रति क्रूरता रोकने का कानून कब एक नई दिशा लेकर गौवध प्रतिबंध की ओर मुड़ता है ?
जानवरों के प्रति क्रूरता रोकथाम कानून 1890 में पारित हुआ | 1890 के कानून को निरस्त करके आजाद भारत की संसद ने  “जानवरों के प्रति क्रूरता रोकथाम कानून, 1960” बनाया,  जिसका उद्देश्य जानवरों को अनावश्यक दर्द दिए जाने को रोकना है | जिसके अनुसार किसी जानवर को पीटना, अत्यधिक क्रूरता से मारना, अधिक भार या किसी अन्य तरह से उसे अनावश्यक दर्द देना, श्रम  करने में असक्षम जानवर को काम में लगाने या फिर हानिकारक दवा देने वाले को दंडित किया जा सकता था |  
1956 में गौवंश की हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए “पंजाब गौवध निषेध कानून, 1955 पारित किया गया | जिससे पंजाब में गौवध पर प्रतिबंध लगा दिया गया (पशुपालक अधिकारी की सहमति के बाद किसी विशेष बीमारी से पीड़ित गाय के वध की छूट का प्रावधान भी रखा गया) |  बीफ यानी गौमांस के बेचने पर भी प्रतिबंध लगाया गया, दवाई के रूप में इस प्रतिबंध से छूट दी जा सकती है |  गौमांस की बिक्री का अपराध करने वाले को 2 साल तक की सजा दी जा सकती है | हरियाणा में लागू इस कानून में सरकार ने 1971 में संशोधन कर गौवध या गौमांस की बिक्री के लिए 5 साल तक की सजा का प्रावधान कर दिया ।
मार्च 2015 में हरियाणा में “गौवंश संरक्षण व गौसंवर्धन कानून, 2015 पारित हुआ | जिस अनुसार बीफ का अर्थ है किसी भी रुप में गौमांस जिसमें डिब्बाबंद आयात किया हुआ गोमांस भी शामिल है| गौ संवर्धन का अर्थ है स्वदेशी नस्ल की गाय का सरंक्षण विकास करना । कानून हरियाणा भर में गौवध पर प्रतिंबंध लगाता है, मगर किसी दुर्घटना या आत्मरक्षा में किसी गाय का मारा जाना गौवध नहीं माना जाएगा । गौवध के लिए गाय के निर्यात व गौमांस के रखने, बेचने या ट्रांसपोर्ट करने पर प्रतिबन्ध है | गौवध के लिए 3 से 10 साल तक की सजा, गौवध के लिए गाय का निर्यात करने पर 3 से 7 साल तक की सजा व गौमांस बेचने ट्रांसपोर्ट करने के अपराध के लिए 3 से 5 साल तक कि सजा का प्रावधान है
कानून में सरकार के लिए निर्देश है कि वह देसी नस्ल की गाय के संरक्षण व उसके अपग्रेडेशन के लिए योजना व प्रोग्राम बनाएगी | साथ ही सरकार को बीमार, घायल, अलाभकारी व भटकती गायों को रखने देखभाल करने के लिए संस्थाओं की स्थापना करनी होगी। हरियाणा सरकार द्वारा 2015 में बनाए गए उक्त कानून के उक्त निर्देश अनुसार सरकार ने राज्य भर में कोई कदम नहीं उठाया है | इसी के चलते राज्य के हर शहर, हर गांव सड़क पर गायों का झुण्ड नजर आता है | इन गायों के कारण हरियाणा की किसानी के लिए भारी संकट पैदा हुआ है, वही सड़क पर दुर्घटनाओं का खतरा भी तेजी से बड़ा है|
धार्मिक आस्था के प्रतीक गाय के संरक्षण के लिए सख्त कानून बनाए जाने के दौर में सामाजिक विमर्श से इस तरह का भावनातमक व असंवेदनशील माहौल निर्मित हुआ है कि आज तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ गाय के प्रति क्रूरता या मार दिए जाने के शक के आधार मौके पर ही सजा देकर खुद अपराध को अंजाम देने लगे हैं | गौ रक्षा के लिए निर्मित संवेदनशील समाज कभी भी इंसान की हत्या के लिए क्रोधित होने का लबादा औढ कर हिंसक नहीं हो सकता | मगर आज जिस तरह की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बन रही है वह चिंताजनक है | भारतीय संविधान किसी भीड़ को अपराध की सजा देने का अधिकार नहीं देता | देश के संविधान कानून के प्रावधान अनुसार किसी भी कानून के उल्लंघन करने वाले के खिलाफ तय प्रक्रिया के तहत पुलिस जांच करेगी, मामला अदालत में जाएगा, गवाहियां होंगी हर आरोपी को संवैधानिक अधिकार है कि वह अपने बचाव में गवाही व तर्क देकर अपना पक्ष रखे |  हरियाणा सरकार द्वारा इस कानून के बाद भी किसी भी आरोपी को कोई भी अदालत मात्र शक के आधार पर सजा नहीं दे सकती | बल्कि अदालत में संदेह से परे साबित करना होता है कि किसी आरोपी ने कानून तोडा है अपराध किया है |
देश के संविधान व कानून के अनुसार शक के आधार पर भीड़ द्वारा किसी आरोपी को सजा देना भी अपराध है | इस अपराध के लिए भी कानून कि तय प्रक्रिया का पालन न्याय ली पहली शर्त है |
राजीव गोदारा (एडवोकेट)
पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट (चंडीगढ़)
dated 24.08.



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