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किसान की मुक्ति, फसल का पूरा दाम व कर्ज मुक्ति

                                                                                                         किसान की मुक्ति , फसल का पूरा दाम व कर्ज मुक्ति किसान को कभी देश के लिए अन्न पैदा करने को कहा गया व पूरा दाम नहीं दिया।फिर सरकारी आयोग की सिफारिश के बाद भी फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम नहीं दिया । हिसाब करो , किसान देनदार नहीं लेनदार है , इसलिए कर्ज के खातों पर लाइन मारो , इसी आधार पर खेती , किसानी व गाँव बचाना हमारी राजनीतिक लड़ाई होगी , तभी सत्ता डोलेगी , अपने कान खोलेगी | देशभर में किसान (किसान यानी जिसका भी जीवन खेती के व्यवसाय पर निर्भर है , चाहे वह खेत मालिक हो या फिर खेत मजदूर , बटाईदार हो या कि पट्टेदार) बदहाल है , खेती घाटे का सौदा बन गई है । हरियाणा में हालत और भी खराब है जहां शहरीकरण के नाम पर खेती की जमीन सरकार लगातार हड़प रही है , वहीं खेती से जुड़ा कोई भी किसान अपनी संतान को खेती के काम में लगाने का जोखिम लेने कि स्थिति में नहीं है । दूसरे काम धंधे में रोजगार मिल नहीं पा रहा इसलिए किसान की संतान बेरोज़गार है। संतान की बेरोज़गारी व किसानों की बदहाली